सोंचता हूँ कि--
कविता की जगह
एक चित्र बना दूँ ,
जिसमें फूल हों ,पत्तियाँ हों
और इसी किस्म की तमाम चीज़ें
कुछ इस ढंग से रखूँ
कि खाली जगहों के आकार
उन चीज़ों से मिलते-जुलते हों
जिनकी ज़रूरत
रोटी खाने के बाद पैदा होती है ,
और जिनका देखा जाना
बहुतों में तसल्ली पैदा करता है ,
शायद इस तसल्ली के बदले
लोग मुझे रोटी देदें !