क्या जाने इस तड़प का कुछ होगा असर भी,
मझधार में ही डूब न जाये ये लहर भी !
साहिल से लग के बैठा हूँ क्या जानिए कब वो,
उस पार से आवाज़ दे 'अब आओ इधर भी '!
यूं ही नहीं मिला है इन्हें ताब-ए-नज्ज़ारा ,
देखी है इन आँखों ने क़यामत की सहर भी !
दिल से ही निकल आएंगे हर बात के मानी ,
कुछ देर को रक्खो ज़रा तुम दिल पे नज़र भी !
फिर हासिल-ए-सौदा-ए-खाम ये रहा 'मिसिर',
दिल भी गया,सर भी गया और अबके जिगर भी !
बेहतरीन, ख़ास तौर पे मतला !
जवाब देंहटाएंइसी मीटर में मेरी प्रिय ग़ज़ल बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल...