लो, रास्ता इक अंधा मोड़ और मुड़ गया,
इस फ़ासले मेँ यह घुमाव और जुड़ गया।
हम तेजरौ थे चाँद से आगे निकल गए,
जल्दी मेँ हमसे अपना ही साया बिछुड़ गया।
हमने तो ये समझा कि जलवे मिरे लिए हैँ,
जब हाथ बढ़ाया तो गिरेबाँ सिकुड़ गया।
सोहबत ने मेरी उसको ख़िरदवर बना दिया,
जब बालो -पर मिले तो कहीँ और उड़ गया।
दौड़े तो बहुत तेज थे उस बर्कपा के साथ,
कुछ दूर चलके पाँव का दम ही निचुड़ गया।
तेजरौ -तेज चलने वाला
गिरेबाँ -दामन
गिरेबाँ -दामन
ख़िरदवर - अक्लमंद
बालो -पर- सामर्थ्य
बर्कपा -जो बिजली
जैसा तेज चलता हो
waah..its too gud!
जवाब देंहटाएंअरुण मिश्रा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत रवां दवां ग़ज़ल है ।
लो, रास्ता इक अंधा
मोड़ और मुड़ गया,
इस फ़ासले में यह
घुमाव और जुड़ गया
बाकी शे'र भी शानदार हैं ।
भाई साहब , ब्लॉग पर कुछ और भी सम्मिलित करें अब तो …
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
लो, रास्ता इक अंधा मोड़ और मुड़ गया,
जवाब देंहटाएंइस फ़ासले मेँ यह घुमाव और जुड़ गया।
बहुत उम्दा
जल्दी में हमसे अपना ही साया बिछुड़ गया .......बहुत पते की बात कही है मिसिर जी आपने. जिसे लोग विकास समझ रहे हैं उसे एक बार फिर ज़रा गौर से देखने की ज़रुरत है. परिभाषा ही बदल जायेगी.
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