धूप के गाँव में

बुधवार, 16 अगस्त 2017

स्वयंसिद्धा : चंद्रकांत देवताले की दस कवितायें

स्वयंसिद्धा : चंद्रकांत देवताले की दस कवितायें
प्रस्तुतकर्ता अरुण अवध पर 3:50 am कोई टिप्पणी नहीं:
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अरुण अवध
अब न वो दीवानगी, वहशत है ना वो इज़्तिराब, धीरे धीरे इक नदी सू-ए-समंदर बह रही।
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