सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

तसल्ली


सोंचता हूँ कि--
कविता की जगह 
एक चित्र बना दूँ , 
जिसमें फूल हों ,पत्तियाँ हों
और इसी किस्म की तमाम चीज़ें 
कुछ इस ढंग से रखूँ 
कि खाली जगहों के आकार 
उन चीज़ों से मिलते-जुलते हों 
जिनकी ज़रूरत 
रोटी खाने के बाद पैदा होती है ,
और जिनका देखा जाना 
बहुतों में तसल्ली पैदा करता है ,
शायद इस तसल्ली के बदले 
लोग मुझे रोटी देदें !